ईशा वास्यमिदं सर्व यत्कित्र्चजगत्यां जगत्।’’ (यजु0, 40-1)
निवेदन
यह ब्रह्मांड जिसमें हम रहते हैं, अत्यंत विशाल, विस्तृत और अद्भुत है। इसकी विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हमारा सूर्य, जो हमारे सौरमंडल का मुखिया है, हमारी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा और लगभग 15 करोड़ कि.मी. दूर है। हमारा यह सूर्य लगभग 9 लाख 60 हजार कि.मी. प्रति घंटा की गति से दौड़ रहा है। इस ब्रह्मांड में न जाने कितने आकाशीय पिंड हमारे सूर्य से लाखों गुना बड़े हैं और न जाने कितने सौरमंडल हैं। करोड़ों सौर मंडलों से बनने वाली एक आकाश गंगा ¼Galaxy½ है जिसमें अरबों-खरबों तारे-सितारे हैं। इस ब्रह्मांड में न जाने कितने करोड़ आकाशगंगाएं हैं। हमारा सूर्य जिस आकाश गंगा में स्थित है उसका केन्द्र सूर्य से लगभग 32000 प्रकाश वर्ष दूर है, जबकि एक प्रकाश वर्ष की लम्बाई 946 अरब कि.मी. है। हर आकाशीय पिंड गतिमान है। सूर्य, चांद, पृथ्वी, तारे सब गतिमान हैं। आकाशीय पिंडों की गति में एक नियमबद्धता है। दिन-रात के प्रत्यावर्तन में नियमबद्धता है। वनस्पति जगत में नियमबद्धता है। प्राणी जगत में नियमबद्धता है। कितना विचित्र है यह ब्रह्मांड! देखकर आश्चर्य होता है। प्रश्न यह है कि जहाँ नियम हो, क्या वहाँ नियामक नहीं होना चाहिए? जहाँ सुव्यवस्था हो, क्या वहाँ व्यवस्थापक नहीं होना चाहिए? ब्रह्मांड की नियमबद्धता इस बात का प्रमाण है कि कोई चेतन शक्ति इसका संचालन कर रही है। यहाँ की नियमबद्धता इस बात का भी प्रमाण है कि वह परम शक्ति एक है। चेतन शक्ति अगर एक से अधिक होती तो इतनी विचित्र और अद्भुत सुनियोजित और अनुशासनबद्धता न होती। इस अति विशाल ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी, जिसका व्यास 12754 कि.मी. और वजन 6x1024 कि.ग्राम है, का अस्तित्व बालू के एक कण से अधिक नहीं है। अब ज़रा सोचिए! इस ब्रह्मांड में हम मनुष्यों का अस्तित्व कितना होगा ? आखि़र हम को क्यों पैदा किया गया है ? क्या हम बिना किसी रचयिता के और बिना किसी उद्देश्य के इस ब्रह्मांड में आ गए हैं ? क्या हम पर कोई नियम-कानून लागू नहीं होता ?
यह सच है कि इस ब्रह्मांड का एक रचयिता है। वही हम सब का स्रष्टा, स्वामी, इष्ट और उपास्य है। परमेश्वर, अल्लाह, गॉड उसी एक परम चेतन शक्ति के नाम हैं। हम सब एक माँ-बाप की संतान हैं। हम सब भाई-भाई हैं। उस एक अति-प्राकृतिक सत्ता ने सृष्टि का सृजन एक महान उद्देश्य के लिए किया है। उस एक अदृश्य परम सत्ता ने अपना संदेश कुछ पवित्र आत्माओं और पुस्तकों द्वारा हम तक पहुंचाया है, वरना हमें कैसे पता चलता कि कोई अदृश्य परम सत्ता इस ब्रह्मांड का संचालन कर रही है। हम सब मनुष्यों का स्रष्टा एक है। इसीलिए हम सब मनुष्यों का जीवन लक्ष्य एक है। उस उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग एक है। उस मार्ग को धर्म कहते हैं। सब मनुष्यों का धर्म एक है। धर्म ईश्वरीय जीवन व्यवस्था का नाम है। यहाँ मनुष्यों में संघर्ष, टकराव और भेदभाव का मूल कारण सृष्टि और मानव जीवन के उद्देश्य को सच्चे अर्थों में न समझ पाना है।
प्रस्तुत पुस्तक "सत्यार्थ प्रकाश : समीक्षा की समीक्षा" में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा प्रतिपादित मानव जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण विषयों और धारणाओं को सादी और सरल भाषा में विज्ञान और विवेक की कसौटी पर कसने का प्रयास किया गया है, जिनका प्रतिपादन स्वामी जी ने अपने महान ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में किया है। यह मेरा संक्षिप्त विश्लेषण है। पाठकों से निवेदन है कि इसके विषयों को निष्पक्ष और स्वतंत्र भाव से पढ़ें और विचार करें कि जिन आस्थाओं और धारणाओं के आधार पर हम अपना जीवन गुज़ार रहे हैं, कहीं वे धारणाएं अतार्किक और अवैज्ञानिक तो नहीं हैं ? पूर्वाग्रह ने कहीं हमें विवेकहीन तो नहीं बना दिया है ? स्वयं को श्रेष्ठ और प्रबुद्ध और दूसरों को हीन और अल्पज्ञ समझने की दंभ पूर्ण और आग्रही वृत्ति ने कहीं हमें सच्चाई का विरोधी तो नहीं बना दिया है ? कहीं हम आत्म-मुग्धता और आत्म-तुष्टि में आत्मवंचना (Self Deception) का शिकार तो नहीं हो गए हैं ? यहाँ मेरा अभिप्राय मात्र इतना है कि हमारा चिंतन सकारात्मक, स्वस्थ और वैज्ञानिक हो, हमारी सोच विश्वस्तरीय हो, न कि क्षेत्रीय, हमारी आस्थाएं और धारणाएं युक्ति-युक्त और विशुद्ध हों, हम सत्यासत्य का निर्णय वाद-विवाद से नहीं बल्कि संवाद ¼Interaction½ से करें ताकि सांप्रदायिकता और दुराभाव की जगह समन्वय और सद्भाव का वातावरण विकसित हो।
विषय
1. प्राक्कथन
2. सत्यार्थ प्रकाशः भाषा, तथ्य और विषय वस्तु
3. नियोग और नारी
4. जीव हत्या और मांसाहार
5. अहिंसां परमो धर्मः ?
6. ‘शाकाहार का प्रोपगैंडा
7. मरणोत्तर जीवनः तथ्य और सत्य
8. दाह संस्कारः कितना उचित?
9. स्तनपानः कितना उपयोगी ?
10. खतना और पेशाब
11. कुरआन पर आरोपः कितने स्तरीय ?
12. क़ाफ़िर और नास्तिक
13. क्या पर्दा नारी के हित में नहीं है ?
14. आक्षेप की गंदी मानसिकता से उबरें
15. मानव जीवन की विडंबना
16. हिंदू धर्मग्रंथों में पात्रों की उत्पत्ति ?
17. अंतिम प्रश्न
Read online
http://www.4shared.com/document/cAx5Te1f/Satyarth_Book_10-august-10-aft.html?
1 comment:
U r a superb Writer Alhamdulillah. :)
aapki bhasha aur dharm par pakad sarahniya hai...
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